गांव वालों ने ददन पहलवान और मुखिया बब्लू पाठक पर उकसाने और कांड की साजिश रखने का आरोप लगाया है.
जबकि अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग के पूर्व चेयरमैन और जदयू नेता विद्यानंद विकल ने अपनी रिपोर्ट में रामजी यादव को कांड का साजिशकर्ता माना है. जबकि उन्होंने ददन पहलवान और संतोष निराला की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए हैं.
बीबीसी के साथ बातचीत करते हुए विधायक ददन पहलवान ने अपने ख़िलाफ़ लगे आरोपों से इनकार करते हैं.
वो कहते हैं कि, "हम तो ये चाहते हैं कि सभी पीड़ितों को यथासंभव न्याय मिले. माननीय मुख्यमंत्री महदोय से इसमें पहले भी एक्शन की मांग कर चुके हैं. वहां के जनप्रतिनिधि होने के नाते मेरी यह हमेशा कोशिश रही है कि किसी भी निर्दोष के साथ अत्याचार नहीं हो."
लेकिन, बातचीत के दौरान पहलवान गांव वालों के उकसाने और मारपीट करने के सवाल पर किनारा कर लेते हैं.
दूसरी तरफ बबलू पाठक और रामजी यादव के विवाद के बार में पूछने पर दोनों अपना-अपना पक्ष रखने लगते हैं.
रामजी यादव कहते हैं कि यदि उन्होंने लोगों को उकसाया और बहलाया तो भी वही लोग उनके साथ क्यों खड़े हैं! ऐसा कैसे हो सकता है."
जबकि बबलू पाठक कहते हैं कि "रामजी यादव उनसे मुखिया का चुनाव हारने का बदला ले रहे हैं. उनका घर महादलित टोला में ही है इसलिए वे उन लोगों के साथ मिलाए हुए हैं."
रिपोर्टिंग के दौरान महादलित टोला के लोगों ने डुमराव पुलिस पर प्रताड़ना के गंभीर आरोप लगाए थे.
आरोपों के जवाब में डुमराव थाना के प्रभारी शिव नारायण राम कहते हैं कि मामले में अभी तक जो भी कुछ हुआ है वह एक प्रक्रिया के तहत हुआ है. पुलिस ने हर कदम पर उस प्रक्रिया का पालन किया है.
डुमरांव के डीएसपी केके सिंह कहते हैं, "मई में जब मामले का सुपरविजन रिपोर्ट तैयार हुआ था तब उनकी पदस्थापना वहां नहीं थी. हालांकि, उन्होंने यह जरूर कहा कि पुलिस नामजदों के बेल के लिए लगातार प्रयास कर रही है. 28 लोगों को तो पहले ही बेल मिल चुका है. फिर से 35 लोगों का बेल पिटीशन दायर किया जा चुका है."
बक्सर के एसपी राकेश कुमार ने बीबीसी के साथ बातचीत में सिर्फ इतना कहा कि पुलिस अपना काम कर रही है. मामला की अभी जांच चल रही है इसलिए कुछ भी बोलना उचित नहीं होगा.
बताते चलें कि मामले में नामजद 36 अन्य अभियुक्तों की जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद अदालत ने याचिका खारिज कर दी है.
बचाव पक्ष के वकील इमरान खान के मुताबिक सोमवार को अदालत में याचिका पर सुनवाई हुई थी. जिसमें सरकारी पीपी ने बेल का विरोध किया था. अदालत ने सोमवार को सुनवाई के बाद फैसला रिजर्व रख लिया था.
मंगलवार को उन सभी 36 जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया गया है.
क्या महादलित टोला के लोगों को आगे भी केस लड़ते रहना पड़ेगा?
महादलित टोला के इन 91 नामजद अभियुक्तों जिनमें करीब 30 से अधिक महिलाएं शामिल हैं, को अभी और कितने दिनों तक सरकार के केस लड़ना पड़ेगा?
इसके जवाब में विद्यानंद विकल कहते हैं कि मेरी रिपोर्ट में बिलकुल साफ हो गया था कि कांड में राजद समर्थकों की साजिश थी. हमने मुख्यमंत्री को भी लिख कर दे दिया है. बाकी महिलाओं, महादलितों और निर्दोषों के नाम हटा लेने के लिए हम मुख्यमंत्री महोदय से फिर से गुहार लगाएंगे.
दूसरी तरफ पत्थरबाजी की घटना में राजद समर्थकों की संलिप्तता के सवाल पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव कहते हैं, "सरकार हर मामले को राजद से जोड़ देती है. आठ महीने हो गए हैं. यदि वाकई सरकार को ये लगता है कि राजद समर्थकों का हाथ है तो उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करती! और यदि पुलिस की रिपोर्ट में मृत व्यक्तियों के नाम, बाहर रहने वालों के नाम और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के नाम शामिल हैं तो फिर मामला ही फॉल्स बन जाएगा. हमनें बार-बार कहा है कि नंदन गांव में जो कुछ भी हुआ, वह नहीं होना चाहिए. लेकिन जिस तरह से निर्दोष लोगों को इसमें फंसा दिया गया, इससे सरकार की मंशा पर सवाल खड़े होते हैं. सरकार को चाहिए कि तत्काल कार्रवाई करते हुए उन निर्दोष महादलितों के खिलाफ केस वापस ले."
मामले को हुए आठ महीने हो गए हैं. नंदन टोला वालों को तब से लगातार पुलिस का चक्कर लगा रहता है.
सोमवार को भी 35 लोगों के जमानत याचिका पर सुनवाई हुई. मगर जमानत पर फैसला रिजर्व रख लिया गया.
आखिर अब गांव वाले सरकार से क्या चाहते हैं? मामले के एक आरोपी उमाशंकर राम इसका जवाब कुछ यूं देते हैं, "हमलोगों ने जो चाहा वो तो हमें मिला नहीं. किसी ने हमारी बात भी नहीं सुनी. हमें तो यह जीवन भर याद रहेगा. पंजाब, हरियाणा और यहां तक कि दुबई रहने वाले लड़कों का भी नाम प्राथमिकी में डाला गया है. जो लोग अस्सी साल के बुजुर्ग हैं उनका नाम भी शामिल है. आखिर ऐसे लोग पत्थर कैसे चलाएंगे. किसी ने ये सोचा नहीं! ये सारा नाम मुखिया ने खुद थाने में बैठकर लिखवाया था. आपको मालूम नहीं होगा कि कि घटना के बाद से नंदन गांव का विकास ठप हो गया है. यहां सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं के बराबर हो रहा है."
महादलित टोले से लौटते समय वॉर्ड छह के सचिव अनिल राम ने रोक लिया. कहने लगे, "हम सरकार से सिर्फ इतना चाहते हैं कि जो भी हुआ उसकी जांच करा ले. लेकिन हम गरीबों को छोड़ दे. हम सरकार के केस लड़ने की हैसियत नहीं रखते हैं. हम चाहते हैं कि मुख्यमंत्री फिर से हमारे गांव में आएं और देखें कि क्या हालत हो गई है. कम से कम हमारी हालत पर तो उनको तरस आएगा."
जबकि अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग के पूर्व चेयरमैन और जदयू नेता विद्यानंद विकल ने अपनी रिपोर्ट में रामजी यादव को कांड का साजिशकर्ता माना है. जबकि उन्होंने ददन पहलवान और संतोष निराला की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए हैं.
बीबीसी के साथ बातचीत करते हुए विधायक ददन पहलवान ने अपने ख़िलाफ़ लगे आरोपों से इनकार करते हैं.
वो कहते हैं कि, "हम तो ये चाहते हैं कि सभी पीड़ितों को यथासंभव न्याय मिले. माननीय मुख्यमंत्री महदोय से इसमें पहले भी एक्शन की मांग कर चुके हैं. वहां के जनप्रतिनिधि होने के नाते मेरी यह हमेशा कोशिश रही है कि किसी भी निर्दोष के साथ अत्याचार नहीं हो."
लेकिन, बातचीत के दौरान पहलवान गांव वालों के उकसाने और मारपीट करने के सवाल पर किनारा कर लेते हैं.
दूसरी तरफ बबलू पाठक और रामजी यादव के विवाद के बार में पूछने पर दोनों अपना-अपना पक्ष रखने लगते हैं.
रामजी यादव कहते हैं कि यदि उन्होंने लोगों को उकसाया और बहलाया तो भी वही लोग उनके साथ क्यों खड़े हैं! ऐसा कैसे हो सकता है."
जबकि बबलू पाठक कहते हैं कि "रामजी यादव उनसे मुखिया का चुनाव हारने का बदला ले रहे हैं. उनका घर महादलित टोला में ही है इसलिए वे उन लोगों के साथ मिलाए हुए हैं."
रिपोर्टिंग के दौरान महादलित टोला के लोगों ने डुमराव पुलिस पर प्रताड़ना के गंभीर आरोप लगाए थे.
आरोपों के जवाब में डुमराव थाना के प्रभारी शिव नारायण राम कहते हैं कि मामले में अभी तक जो भी कुछ हुआ है वह एक प्रक्रिया के तहत हुआ है. पुलिस ने हर कदम पर उस प्रक्रिया का पालन किया है.
डुमरांव के डीएसपी केके सिंह कहते हैं, "मई में जब मामले का सुपरविजन रिपोर्ट तैयार हुआ था तब उनकी पदस्थापना वहां नहीं थी. हालांकि, उन्होंने यह जरूर कहा कि पुलिस नामजदों के बेल के लिए लगातार प्रयास कर रही है. 28 लोगों को तो पहले ही बेल मिल चुका है. फिर से 35 लोगों का बेल पिटीशन दायर किया जा चुका है."
बक्सर के एसपी राकेश कुमार ने बीबीसी के साथ बातचीत में सिर्फ इतना कहा कि पुलिस अपना काम कर रही है. मामला की अभी जांच चल रही है इसलिए कुछ भी बोलना उचित नहीं होगा.
बताते चलें कि मामले में नामजद 36 अन्य अभियुक्तों की जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद अदालत ने याचिका खारिज कर दी है.
बचाव पक्ष के वकील इमरान खान के मुताबिक सोमवार को अदालत में याचिका पर सुनवाई हुई थी. जिसमें सरकारी पीपी ने बेल का विरोध किया था. अदालत ने सोमवार को सुनवाई के बाद फैसला रिजर्व रख लिया था.
मंगलवार को उन सभी 36 जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया गया है.
क्या महादलित टोला के लोगों को आगे भी केस लड़ते रहना पड़ेगा?
महादलित टोला के इन 91 नामजद अभियुक्तों जिनमें करीब 30 से अधिक महिलाएं शामिल हैं, को अभी और कितने दिनों तक सरकार के केस लड़ना पड़ेगा?
इसके जवाब में विद्यानंद विकल कहते हैं कि मेरी रिपोर्ट में बिलकुल साफ हो गया था कि कांड में राजद समर्थकों की साजिश थी. हमने मुख्यमंत्री को भी लिख कर दे दिया है. बाकी महिलाओं, महादलितों और निर्दोषों के नाम हटा लेने के लिए हम मुख्यमंत्री महोदय से फिर से गुहार लगाएंगे.
दूसरी तरफ पत्थरबाजी की घटना में राजद समर्थकों की संलिप्तता के सवाल पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव कहते हैं, "सरकार हर मामले को राजद से जोड़ देती है. आठ महीने हो गए हैं. यदि वाकई सरकार को ये लगता है कि राजद समर्थकों का हाथ है तो उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करती! और यदि पुलिस की रिपोर्ट में मृत व्यक्तियों के नाम, बाहर रहने वालों के नाम और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के नाम शामिल हैं तो फिर मामला ही फॉल्स बन जाएगा. हमनें बार-बार कहा है कि नंदन गांव में जो कुछ भी हुआ, वह नहीं होना चाहिए. लेकिन जिस तरह से निर्दोष लोगों को इसमें फंसा दिया गया, इससे सरकार की मंशा पर सवाल खड़े होते हैं. सरकार को चाहिए कि तत्काल कार्रवाई करते हुए उन निर्दोष महादलितों के खिलाफ केस वापस ले."
मामले को हुए आठ महीने हो गए हैं. नंदन टोला वालों को तब से लगातार पुलिस का चक्कर लगा रहता है.
सोमवार को भी 35 लोगों के जमानत याचिका पर सुनवाई हुई. मगर जमानत पर फैसला रिजर्व रख लिया गया.
आखिर अब गांव वाले सरकार से क्या चाहते हैं? मामले के एक आरोपी उमाशंकर राम इसका जवाब कुछ यूं देते हैं, "हमलोगों ने जो चाहा वो तो हमें मिला नहीं. किसी ने हमारी बात भी नहीं सुनी. हमें तो यह जीवन भर याद रहेगा. पंजाब, हरियाणा और यहां तक कि दुबई रहने वाले लड़कों का भी नाम प्राथमिकी में डाला गया है. जो लोग अस्सी साल के बुजुर्ग हैं उनका नाम भी शामिल है. आखिर ऐसे लोग पत्थर कैसे चलाएंगे. किसी ने ये सोचा नहीं! ये सारा नाम मुखिया ने खुद थाने में बैठकर लिखवाया था. आपको मालूम नहीं होगा कि कि घटना के बाद से नंदन गांव का विकास ठप हो गया है. यहां सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं के बराबर हो रहा है."
महादलित टोले से लौटते समय वॉर्ड छह के सचिव अनिल राम ने रोक लिया. कहने लगे, "हम सरकार से सिर्फ इतना चाहते हैं कि जो भी हुआ उसकी जांच करा ले. लेकिन हम गरीबों को छोड़ दे. हम सरकार के केस लड़ने की हैसियत नहीं रखते हैं. हम चाहते हैं कि मुख्यमंत्री फिर से हमारे गांव में आएं और देखें कि क्या हालत हो गई है. कम से कम हमारी हालत पर तो उनको तरस आएगा."